नेटवर्क मार्केटिंग 21 वी सदी का व्यवसाय

तकनिकी विकास और लागत में कमी : धन से वास्तु ले लेन-देन की प्रणाली जब शुरू हुए, तब उत्पादक सीधे ग्राहक तक पहुचता था | तब लागत थी 90 रुपये और ग्राहक को 100 रुपये में उत्पाद मिल जाते थे | उत्पादक व्दारा सीधे ग्राहकों तक बड़ी संख्या में पहुचना असंभव था, तटब इसमे मध्यस्थों ( बिचौलियों ) का प्रवेश हुआ | मध्यस्थों ने उत्पादों को बड़ी संख्या में ग्राहकों तक पहुचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए | तकनिकी विकास के कारण उत्पादों की गुणवत्ता में क्रमशः सुधर होता रहा और क्रमशः लागत में लगातार कमी होती रही | अगरमहंगाई का मुददा छोड़ दिया जाए, तो जिस वास्तु की लागत 90 रुपए हुआ करती थी, आज औसतन मात्र 20 रूपए रह गई है | लेकिन खुदरा मूल्य अब भी पहले की तरह 100 रूपए ही है, क्योंकि मध्यस्थो की संख्या, विशेषकर विज्ञापन ख़र्च बढ़ गया है | लगभग अस्सी प्रतिशत मध्यस्थों में बट जाता है | ग्राहक को गुणवत्ता का तो लाभ मिला है, पर दाम का लाभ हमेश नहीं मिला |

आज अगर गुणवत्ता व् दाम की मेरी इस बात से सहमत नहीं हैं, तो गौर करे की कंप्यूटर जो पहले दो लाख में मिलता था और रखने के लिए सौ वर्ग फ़ुट का रूप भी छोटा पड़ता था,आज चार वर्ग फ़ुट की जगह में रख जा सकता है | कीमत केवल बीस हजार और गुणवत्ता में सैकड़ो गुना आगे ... सही है न | मशीनों ने लाखो मजदूरों की जगह ले ली | एक-एक मशीन सैकड़ो मजदूरों का कम करती है, एक बार मशीन पर लागत, थोड़ा सा देखभाल पर ख़र्च, फिर फ़ायदा ही फ़ायदा, क्योंकि ....

1  मशीन एक जैसा उत्पाद बनाती है, उसमें निरंतरता होती है |

2  मशीन थकती नहीं | गप्पे नहीं लड़ाती | तंबाखू नहीं खाती | चाय पिने नहीं जाती |

3  मशीन छुटटी नहीं माँगती | मैटर्निटी  लिवा भी नहीं लेती |

4  मशीन की कोई यूनियन नहीं होती | तनख्वाह या बोनस के लिए हड़ताल भी नहीं करती|     

5  मशीन शिकवा-शिकायत भी नहीं करती, बीएस थोडा सा रखरखाव मँगती है, जो दो-चार

        लोग कर सकते है | और भी कई फ़ायदे......

निश्चित तौर पर गुणवत्ता में सुधार और लागत में भी का एक कारक है, मशीन | फ़र्क आप देखा सकते है किसी भी उत्पाद में, चाह वो साबुन हो, बर्तन हो, पुस्तक हो | चलिए सबसे ज्यादा जरुरी चीज अनाज का उदहारण लेते हैं | अमेरिका में पहले तिस लाख किसान एक करोड़ लोगो के लिए अनाज उगाते थे | आज तीन लाख किसान दस करोड़ लोगो के लिए अनाज उगा सकते हैं, पहले वाली ही जमीन पर और वो भी कम क्षेत्र में, और गुणवत्ता में भी सुधार है |

अब कंप्यूटर के युग में, इस सुधार में और तेज़ी आई हैं | अब साहब और बाबू लोगों की भी छुटटी हो गई है | इक कंप्यूटर कई साहबों और बाबुओ का काम कर लेता हैं | नौकरी अब सुसक्षित रोजगार नहीं रहा | व्यवसाय में हर दिन नाई  जानकारी से लैस होना ज़रूरी है | अब तो सॉफ्टवेयर  इंजीनियर दादाजी को अपने पोते के साथ कंप्यूटर की नाई भाषा सिखाने के लिए जाना पड़ेगा, वरना वे पीछे छूट जाएगे | व्यापार में स्पर्धा गया काटने की सीमा तक पहुच गई है | ऊपर से बड़ी पूँजी की लागत, पूँजी डूबने का डर, से पंद्रह घंटे की मेहनत....तौबा ....|

         बाजार में बदलाव :

बेचने वाले की हुकूमत से ख़रीदार की हुकूमत

आइए फिर से एक बार इस बात को समझे | जिस वस्तु की कीमत बाजार में रु. 100 /- है, वह अब केवल रु. 20 /- की लगत से बन रही हैं | अब तो उत्पादक स्पर्धा की दौड़ में आगे बने रहने के लिए नई-नई तकनीकों को अपनाकर उत्पादन ख़र्च में कमी लेन का प्रयास कर रहे है, एक-एक पैसे से फ़र्क पड़ता है | जितना गुणवत्ता में सुधार और लागत में कमी होंगी उतना ही स्पर्धा में बने रहने के अवसर आधिख रहेंगे, क्योंकि अब ग्राहक ही बाजार का आधार है | जो वस्तु ग्राहक का फायदा ध्यान में रखकर बनाई जाएगी, वाही चलेगी | समय बदल गया है, पहले बाजार पर बेचने वाले की हुकूमत चलती थी, सेलर्स मार्केट था | बजाज का स्कूटर खरीदने के लिए नंबर लगाना पड़ता था, एडवांस में पैसा जमा करना पड़ता था | बजाज का स्कूटर तब महीनों बाद मिलता था, बजाज स्कूटर की कालाबाजारी आम बात थी | ग्राहक के पास तब कोई विकल्प नहीं था | अब खरीदार का बाजार है | खुली अर्थव्यवस्था के चलते ग्राहक के पास विकल्प है | अब तो स्कूटर मोटर बाइक ले आइए, क़ीमत को किस्तों में अदा कीजिए | एल.पी.रिकोर्ड्स का व्यापर 24 बिलियन डॉलर (एक लाख करोड़ रूपए) का था | लेकिन सस्ती ऑडियो कैसेट के आने पर एमपी 3 सीडी ने रही-सही कसर पूरी कर दी है | एक दस रुपए की आवाज़ और श्रेष्ठ  गुणवत्ता के कारण सीडी ने एल.पि. को अजायबघर की वास्तु बना दिया है | क्यों ....? क्योंकि ग्राहक को अधिक सामग्री और श्रेष्ठ गुणवत्ता सीडी के कारण कम दामों में मिल रही है | इसलिए सीडी का व्यापर चलेगा, एल.पी.का नहीं | यही सिद्धांत हर वस्तु पर लागू रहेंगा | ऐसा नहीं है कि संगीत का व्यवसाय कम हुआ है, बल्कि कई गुना बढ़ा है | फिर भी जो जनहित में होगा, ग्राहक के फायदे में होगा, वही बाजार में टिकेंग |